पैसा कमाने के लिए जमकर सीजेरियन प्रसव कर रहे हैं अस्‍पताल

पैसा कमाने के लिए जमकर सीजेरियन प्रसव कर रहे हैं अस्‍पताल

सेहतराग टीम

निजी अस्‍पतालों पर अकसर ये आरोप लगता रहा है कि पैसा कमाने के लिए वे सामान्‍य प्रसव की जगह सीजेरियन प्रसव को बढ़ावा देते हैं और इस क्रम में गर्भवती महिला और बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य को होने वाले नुकसान पर को लेकर वे पूरी तरह संवेदनहीन हो जाते हैं। कई अस्‍पतालों पर ये आरोप हैं कि वो डॉक्‍टरों पर सीजेरियन प्रसव करवाने के लिए दबाव डालते हैं। हालांकि निजी अस्‍पताल और डॉक्‍टर हमेशा इस आरोप से इनकार करते रहे हैं

राष्‍ट्रीय परिवार स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण के आंकड़ों की मानें तो देश में निजी अस्‍पतालों में सीजेरियन प्रसव की संख्‍या 40 फीसदी से अधिक है यानी 100 में से 40 के करीब बच्‍चे ऑपरेशन से पैदा हो रहे हैं जबकि सरकारी अस्‍पतालों में यही आंकड़ा सिर्फ 12 फीसदी का है। यूं तो ये अंतर अपने आप में सारी कहानी कह देता है मगर अब एनएफएचएस पर आधारित एक सर्वेक्षण में ये खुलासा हुआ है कि भारत में एक साल में निजी अस्पतालों में हुए 70 लाख प्रसवों से से नौ लाख प्रसव बगैर पूर्व योजना के सीजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) के जरिये हुए और इन्‍हें ‘रोका’ जा सकता था। सर्वे का नतीजा है कि ये ऑपरेशन मुख्यत: पैसा कमाने के लिए किए गए।

ये सवेक्षण भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-ए) ने कराया है। इस अध्‍ययन में कहा गया है कि शिशुओं के ‘चिकित्सीय रूप से अनुचित’ ऐसे जन्म से ना केवल लोगों की जेब पर बोझ पड़ा बल्कि इससे बच्‍चों को ‘स्तनपान कराने में देरी हुई, शिशु का वजन कम हुआ, सांस लेने में तकलीफ हुई।’ इसके अलावा नवजातों को अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ा।

आईआईएम-ए के फैकल्टी सदस्य अंबरीश डोंगरे और छात्र मितुल सुराना ने यह अध्ययन किया। अध्ययन में पाया गया कि ‘जो महिलाएं प्रसव के लिए निजी अस्पतालों का चयन करती हैं उनमें सरकारी अस्पतालों के मुकाबले बगैर पूर्व योजना के सी-सेक्शन से बच्चे को जन्म देने की आशंका 13.5 से 14 फीसदी अधिक होती है।’ 

ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2015-16 में हुए चौथे चरण पर आधारित हैं जिसमें पाया गया कि भारत में निजी अस्पतालों में 40.9 फीसदी प्रसव सी-सेक्शन के जरिए हुए जबकि सरकारी अस्पतालों में यह दर 11.9 प्रतिशत रही।

अध्ययन में कहा गया है कि सी-सेक्शन के जरिए नवजातों का जन्म कराने के पीछे मुख्य वजह ‘वित्तीय लाभ’ कमाना रहा।

एनएफएचएस का हवाला देते हुए आईआईएम-ए के अध्ययन में कहा गया है कि किसी निजी अस्पताल में प्राकृतिक तरीके से प्रसव पर औसत खर्च 10,814 रुपये होता है जबकि सी-सेक्शन से 23,978 रुपये होता है। अध्ययन में कहा गया है, ‘चिकित्सीय तौर पर स्पष्ट किया जाए तो सी-सेक्शन से प्रसव से मातृ और शिशु मृत्यु दर और बीमारी से बचाव होता है लेकिन जब जरूरत ना हो तब सी-सेक्शन से प्रसव कराया जाए तो इससे मां और बच्चे दोनों पर काफी बोझ पड़ता है जो जेब पर पड़ने वाले बोझ से भी अधिक होता है।’ 

इसमें कहा गया है कि सी-सेक्शन से प्रसव की संख्या कम करने के लिए सरकार को ना केवल उपकरणों और कर्मचारियों के लिहाज से बल्कि अस्पताल के समय, सेवा प्रदाताओं की अनुपस्थिति और बर्ताव के लिहाज से भी सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं को मजबूत करना होगा।

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